मछलियों की सामान्य बीमारियाँ और उनके लक्षण: मछली पालने वालों के लिए एक साधारण मार्गदर्शन
मछली पालन भोजन सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है, लेकिन मछलियों की बीमारियों की वजह से बड़ा नुकसान होता है। यह गाइड किसानों की मदद करता है सामान्य बीमारियों की पहचान करने, उन्हें रोकने और उनका इलाज करने में, ताकि मछलियों की सुरक्षा रहे और मुनाफ़ा बढ़े।


मछलियों की सामान्य बीमारियाँ और उनके लक्षण: मछली पालने वालों के लिए एक साधारण मार्गदर्शन
मछली पालन या एक्वाकल्चर एक महत्वपूर्ण बिजनेस है, जो लोगों को भोजन देता है और उनकी रोज़ी-रोटी का साधन भी है। FAO के अनुसार, साल 2020 में एक्वाकल्चर ने 8 करोड़ 75 लाख टन जलीय जनावर पैदा किए, जिसका मतलब है कि दुनिया की लगभग आधी मछलियां एक्वाकल्चर से आईं। फिर भी, मछलियों की बीमारियां बड़ा नुकसान पहुंचाती हैं — हर साल लगभग 6 अरब डॉलर का नुकसान होता है (FAO, 2023)।
समय पर लक्षण पहचानने, सुरक्षा के तरीके अपनाने, और वैज्ञानिक सलाह पर काम करने से मछलियों की सुरक्षा रहती है और मुनाफ़ा भी बढ़ता है।
यह गाइड मछलियों की मुख्य बीमारियों, उनके लक्षण, कारण, प्रभावित होने वाली प्रजातियों, और उनके इलाज की जानकारी देता है। FAO, वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन फॉर एनिमल हेल्थ (WOAH), रिसर्चगेट, और नए अध्ययन पर आधारित होकर हम मछली पालने वालों की मदद करना चाहते हैं ताकि उनके स्टॉक्स स्वास्थ्यवान रहे हों।
मछलियों की बीमारियों का नियंत्रण महत्वपूर्ण क्यों है?
मछलियों की बीमारियां मछली पालन में जल्दी फैल जाती हैं, मुख्य रूप से पर्यावरण और व्यवस्था सम्बन्धी कारनों की वजह से, जैसे:
• गंदा पानी: पानी में अधिक अमोनिया, नाइट्राइट या ऑक्सिजन की कमी होने पर मछलियां तनाव में रहती हैं, जिसका असर उनके स्वास्थ्य पर पड़ता है।
• ज्यादा भीड़: एक साथ बहुत सारी मछलियां होने पर एक-दूसरा रोग फैलाती हैं और भोजन या स्थान के लिए मुकाबला भी बढ़ाता है।
• तनाव: मछलियों को पकड़ने, एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने या पानी का तापमान बदलने पर तनाव होता है, जिससे उनके शरीर की सुरक्षा क्षमता घट जाती है।
• संक्रमित चारा या साधन: चारा, पानी या औजार पहले ही संक्रमित होने पर उनके साथ रोग फैलने लगता है।
समय पर पहचान और इलाज से बड़े नुकसान को रोका जा सकता है, इलाज की लागत कम की जा सकती है, और आपका निवेश सुरक्षित रह सकता है।
नीचे हम मछलियों की मुख्य बीमारियां, उनके लक्षण और उनके इलाज पर चर्चा करेंगे।
1. मछलियों की बैक्टीरियाजनित बीमारियां
मछलियों में बैक्टीरियाजनित संक्रमण मछली पालन केंद्रों में आम हैं, खासकर जहां देखभाल अच्छी नहीं होती। ये मुख्य रूप से तनाव या चोट वाली मछलियों पर हमला करते हैं, और इलाज नहीं किया जाने पर अधिक मौतें होती हैं।
A. कॉलमनेरिस रोग (रुई जैसा रोग)


कारण:
Flavobacterium columnare नाम का एक बैक्टीरिया, जो गरम और अच्छे भोजन वाले पानी में रहता है।
लक्षण:
शरीर, गलफड़ों या पंख पर सफेद या ग्रे चित्तें, जैसा रूई जैसा दिखें।
घाव होना, पंख सड़ना या उनके किनारे घिस जाना।
मछलियां सुस्त रहती हैं, खाना नहीं खातीं, या असंतुलित होकर तैरने लगती हैं।
अधिक होने पर गलफड़ों पर घाव होने लगने की वजह से सांस लेने में मुश्किल होती है।
कौन प्रभावित होती हैं:
कैटफिश, तिलापिया, कार्प, ट्राउट और एक्वेरियम की मछलियां जैसे गप्पी।
नुकसान:
गंदे या तनावपूर्ण वातावरण में शिशु मछलियों की मौतें 90% तक पहुंच सकती हैं (FAO, 2023)।
रोकथाम और इलाज:
पानी की गुणवत्ता सुधारें: अमोनिया (0.02 मि.ग्रा/L या इससे नीचे) रखें और ऑक्सिजन (5 मि.ग्रा/L या अधिक) अच्छा रखें।
दवा: अनुभवी पशु चिकित्सक की सलाह पर चारा या भोजन में ऑक्सिटेट्रासाइक्लिन या फ्लोर्फेनिकोल दें। साथ ही दवा देने के बाद तय किया हुआ सुरक्षा काल अपनाएँ।
नमक स्नान: 5 मिनट तक 3–5% नामक घोल में स्नान कराकर कीटाणुओं की संख्या घटाएँ।
जैव सुरक्षा: नए या प्रभावित मछलियों को साथ न रखें और औजार साफ रखें।
अन्य सलाह:
तापमान पर नजर रखें (25–30°C पर यह अधिक फैलता है)। साथ ही, नियमित पानी की जांच करना अच्छे स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है (जैसे — Fish Vigyan LifePro Freshwater Test Kits)।
B. एरोमोनास संक्रमण (चलने वाली एरोमोनास से होने वाली रक्त संक्रमण)


कारण:
Aeromonas hydrophila नाम का एक सामान्य बैक्टीरिया, जो ताजे पानी में रहता है।
लक्षण:
शरीर पर लाल घाव या जख्म, उनके किनारे पर रक्त जैसा चिह्न।
शरीर सूज जाना (तरल भरने की वजह से)।
पंख सड़ने लगना, गलफड़ों से खून आना या आखें बाहर आ जाना।
असंतुलित तैरना या भोजन करना कम करना।
कौन प्रभावित होती हैं:
कार्प, तिलापिया, कैटफिश, साल्मोन, एक्वेरियम की मछलियां इत्यादि।
नुकसान:
ज्यादा भीड़ होने पर 50–80% तक मछलियां मर सकती हैं (ResearchGate, 2022)।
रोकथाम और इलाज:
संख्या घटाएँ: हर प्रकार की मछली की सलाह अनुसार स्टॉक रखें (जैसे — तिलापिया 10–15 किलो/m³)।
कीटाणु नाशन: तालाब का पानी पोटेशियम परमैंगेनेट (2–4 मि.ग्रा/L) डालकर साफ रखें।
दवा: अनुभवी पशु चिकित्सक की सलाह पर एन्रोफ्लॉक्सासिन या ऑक्सिटेट्रासाइक्लिन दें।
प्रोबियोटिक्स: चारा या भोजन में Bacillus subtilis डालें, इससे मछलियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ेंगी।
अन्य सलाह:
कम ऑक्सिजन होने पर (4 मि.ग्रा/L या इससे नीचे) संक्रमण अधिक फैलता है। एरीटर या पैडल व्हील लगाकर पानी का बहाओ सुधारें।
C. एडवार्ड्सियेल्लोसिस (कैटफिश का आंत संबंधी रक्त संक्रमण - ESC)


कारण:
Edwardsiella ictaluri नाम का एक ग्राम-नेगेटिव, छड़ जैसा बैक्टीरिया।
लक्षण:
शरीर पर छोटे सफेद चिह्न या घाव।
सिर पर सूजन या घाओ (इसे “होल-इन-द-हेड” भी कहते हैं)।
मछलियां सुस्त रहती हैं, चकराकर तैरने लगती हैं या संतुलन नहीं रखा पातीं।
चीरने पर उनके अंदर रक्तस्राव नजर आता है।
कौन प्रभावित होती हैं:
ज्यादातर कैटफिश, साथ ही दूसरी कैटफिश की प्रजातियां भी प्रभावित होती हैं।
नुकसान:
संयुक्त राज्य अमेरिका में ESC कैटफिश की मौत का मुख्य कारण है, जिसका नुकसान 70% तक पहुंच सकता है (FAO, 2021)।
रोकथाम और इलाज:
टीकाकरण: एक्वावैक-ESC जैसा व्यावसायिक टीका रोग फैलने की संभावना घटाता है।
पानी की गुणवत्ता: pH 6.5–7.5 रखें और पानी का तापमान 30°C से नीचे रखें, क्योंकि अधिक गरमी पर इसका फैलाओ बढ़ाता है।
दवा दिया हुआ चारा: अनुभवी पशु चिकित्सक की सलाह पर Romet-30 (sulfadimethoxine-ormetoprim) चारा दिया जा सकता है।
क्वारंटाइन: नए स्टॉक की मछलियों को अलग रखें, ताकि रोग फैलने का खतरा न रहे।
अन्य सलाह:
तालाब में चूने (कैल्शियम कार्बोनेट) का नियमित छिड़काओ pH स्थिर रखने और बैक्टीरिया की संख्या घटाने में सहायक होगा।
2. मछलियों की वायरल बीमारियां
वायरल बीमारियां बहुत तेजी से फैलती हैं और उनका इलाज करना कठिन होता है, इसलिए बचाव बहुत जरूरी है। प्रभावित मछलियों को हटाकर ही स्वस्थ मछलियों को सुरक्षित रखा जा सकता है।
A. कोइ मछली हरपीजवायरस (केएचवी)


कारण:
Cyprinid herpesvirus-3 (CyHV-3) नाम का एक डीएनए वायरस।
लक्षण:
गलफड़ों पर सफेद चित्तें या घाव, जिसके कारण सांस लेने में मुश्किल होती है।
आखें अंदर गिर जाती हैं, शरीर पर घाव होने लग जाते हैं, और चिपचिपा पदार्थ अधिक निकलने लगता है।
संक्रमण होने पर 7–14 दिनों में 80–100% तक मछलियां मर जाती हैं।
मछलियां सुस्त रहती हैं या एक साथ इकट्ठा होने लगती हैं।
कौन प्रभावित होती हैं:
साधारण कार्प, कोई मछलियां और उनके क्रॉसब्रीड्स।
नुकसान:
केएचवी ने एशियाई और यूरोपीय कार्प पालन पर बड़ा नुकसान किया है (WOAH, 2023)।
रोकथाम और इलाज:
क्वारंटाइन: नई मछलियों को 20–23°C पर 3–4 सप्ताह तक अलग रखें, ताकि रोग फैलने का खतरा न रहे।
तापमान नियंत्रण: पानी का तापमान 23°C या इससे अधिक रखें, इससे वायरस की गति धीमी रहती है।
जैव सुरक्षा: जाल, जूते, नावें आदि साफ रखें, ताकि संक्रमण न फैले।
कोई इलाज नहीं: प्रभावित मछलियों को बाहर निकालें, समाप्त किया जाना चाहिए, और तालाब की अच्छे से सफाई की जानी चाहिए।
अन्य सलाह:
यह वायरस पानी में लंबे समय तक रह सकता है, इसलिए साफ-सफाई पर विशेष जोर दें।
B. तिलापिया झील वायरस (TiLV)


कारण:
यह एक आरएनए वायरस है, जैसा Orthomyxovirus, जिसका पहली बार इजरायल में 2014 में पता चला था।
लक्षण:
भूख नहीं लगना, सुस्त रहना या साथ नहीं तैरना।
शरीर का रंग गहरा होना, आखें धुंदली होना, या शल्क गिरना।
जिगर का नुकसान होना या पेट सूजना (जांच होने पर पता चलता है)।
छोटी तिलापियाओँ में मृत्यु दर 20–90% तक पहुंच जाती है।
कौन प्रभावित होती हैं:
नाइल तिलापिया और लाल तिलापिया की क्रॉसब्रीड्स।
नुकसान:
यह वायरस हर साल लगभग 60 लाख टन तिलापिया उत्पादन पर असर डालता है (FAO, 2022)।
रोकथाम और इलाज:
तालाब की साफ-सफाई: मरी हुई मछलियों और गंदगी को नियमित रूप से बाहर निकालें।
स्वस्थ मछलियों का स्टॉक रखें: केवल TiLV-मुक्त केंद्रों या हैचरी से मछलियां चुनें।
कोई विशेष इलाज नहीं: प्रभावित मछलियों को बाहर निकालें और तालाब की अच्छे से साफ-सफाई करें।
अनुसंधान: नए टीकों पर शोध चल रहा है, लेकिन ज़्यादातर अब भी प्रयोग के चरण में हैं।
अन्य सलाह:
विभिन्न स्थानों की तिलापियाओँ को एक साथ न रखें, इससे संक्रमण फैलने का खतरा रहता है।
3. मछलियों की परजीवी बीमारियां
परजीवी मछलियों को कमजोर कर देते हैं, उनके बढ़ने की गति धीमी कर देते हैं, और दूसरी बीमारियों का खतरा बढ़ा देते हैं। परजीवियों पर नियंत्रण रखने से मछली पालन अधिक अच्छा रहता है।
A. इच (सफेद चित्ती रोग)


कारण:
Ichthyophthirius multifiliis नाम का एक परजीवी, जिसका शरीर सूक्ष्म रोम जैसा होता है।
लक्षण:
शरीर, गलफड़ों या पंख पर सफेद चित्तियां (0.5–1 मिमी)।
चिढ़ने पर मछलियां वस्तुओं पर शरीर घिसने लगाती हैं।
मछलियां तेजी से सांस लेने लगती हैं, उनके पंख चिपकने लगते हैं, या वे छिपने लगती हैं।
अधिक संक्रमण होने पर चर्म गिरने या सांस न आने की समस्या भी होती है।
कौन प्रभावित होती हैं:
सब प्रकार की ताजे पानी की मछलियां, जैसे तिलापिया, कार्प, कैटफिश और एक्वेरियम मछलियां।
नुकसान:
यह परजीवी नए चारा मछलियों (फ्राई) की 100% तक मौत का कारण बन सकता है (ResearchGate, 2021)।
रोकथाम और इलाज:
तापमान बढ़ाएँ: पानी का तापमान 30°C तक 2–3 दिनों तक रखें (यदि मछलियां सह सकें), इससे परजीवियों का चक्र जल्दी समाप्त होगा।
नमक स्नान: 1–3% नामक घोल में मछलियों को 5–10 मिनट रखें।
रासायनिक इलाज: अनुभवी व्यक्ति की सलाह पर औषधि जैसे फॉर्मालिन (25–50 ppm) या मैलाचाइट ग्रीन (0.1–0.2 मि.ग्रा/L) का प्रयोग किया जा सकता है।
अन्य सलाह:
परजीवी का एक तैरने वाली अवस्था भी होती है, जिसका नाम थेरॉन (theront) है। हर 2–4 दिनों पर इलाज करना चाहिए (कुल 2 सप्ताह तक) ताकि इसका चक्र समाप्त किया जा सके।
B. गिल परजीवी (Dactylogyrus और Gyrodactylus)


कारण:
चपटे परजीवी कीड़े — Dactylogyrus मुख्य रूप से गलफड़ों पर हमला करता है, जबकि Gyrodactylus शरीर पर रहता है।
लक्षण:
अधिक चिपचिपा पदार्थ या श्लेश्म, जिसके कारण गलफड़ सूज जाते हैं या उनका रंग फीكا होने लगता है।
मछलियां सांस लेने के लिए बार-बार सतह पर आती हैं।
सूक्ष्मदर्शन यंत्र (माइक्रोस्कोप) पर परजीवी (0.5–2 मिमी) नजर आ जाते हैं।
लंबे संक्रमण पर मछलियों का वजन नहीं बढ़ता या उनका स्वास्थ्य गिरने लगता है।
कौन प्रभावित होती हैं:
कार्प, तिलापिया, गोल्डफिश और ट्राउट मछलियां।
नुकसान:
गंभीर संक्रमण होने पर चारा बदलने या खाने की क्षमता 15% तक गिर जाती है (FAO, 2023)।
रोकथाम और इलाज:
प्राजिक्वांटेल स्नान: 2–10 मि.ग्रा/L घोल में 24 घंटे तक रखें परजीवियों को समाप्त किया जा सके।
फॉर्मालिन स्नान: 25–50 ppm घोल में 30–60 मिनट रखें, साथ ही अच्छे ऑक्सिजन की व्यवस्था रखें।
संख्या नियंत्रण: एक साथ अधिक मछलियां न रखें, इससे परजीवियों का फैलना मुश्किल होगा।
अन्य सलाह:
नियमित सूक्ष्मदर्शन (माइक्रोस्कोप) किया जाना चाहिए ताकि परजीवियों का जल्दी पता लग सके। प्रभावित स्थान या नए पौधे न डालें।
4. कवक जनित मछलियों की बीमारियां
कवक जनित रोग मुख्य रूप से तनाव या चोट वाली मछलियों पर हमला करते हैं, खासकर जहां पानी में गंदगी या जैविक पदार्थ अधिक हों।
A. सैपरोलेग्नियासिस (रुई जैसा कवक रोग)


कारण:
Saprolegnia नाम का एक कवक, जो ठंडे और गंदे पानी में रहता है।
लक्षण:
शरीर, पंख या अंडों पर रूई जैसा चिपचिपा पदार्थ नजर आता है।
मछलियां सुस्त रहती हैं, उनके शल्क गिरने लग जाते हैं, और साथ ही दूसरे संक्रमण भी होने लग जाते हैं।
प्रभावित अंडे धुंधले लगने लग जाते हैं और नहीं फूट पाते।
कौन प्रभावित होती हैं:
सभी ताजे पानी की मछलियां, विशेषकर ट्राउट, सैल्मन और कैटफिश, जो ठंडे पानी (15°C या इससे नीचे) में रहती हैं।
नुकसान:
यह कवक हैचरी में 20–50% तक अंडे नष्ट कर देता है (ResearchGate, 2022)।
रोकथाम और इलाज:
नमक स्नान: 3% नमक घोल में 5 मिनट तक रखें, इससे कवक नहीं फैलता।
मैलाचाइट ग्रीन या हाइड्रोजन पेरॉक्साइड: अनुभवी व्यक्ति की सलाह पर इसका उपयोग किया जा सकता है (मैलाचाइट पर कुछ देशों में प्रतिबंध है)।
सफाई: मरी हुई मछलियां, अंडे या गंदगी हर दिन साफ रखें।
अन्य सलाह:
कवक 15°C या इससे नीचे अधिक फैलता है। परिपथ व्यवस्था या फिल्टर (जैसे UV फिल्टर) इसका फैलना रोकने में सहायक हैं।
5. भोजन या पर्यावरण सम्बन्धी बीमारियाँ
खराब भोजन या पर्यावरण होने पर भी संक्रामक जैसा रोग लग सकता है, जिससे बड़ा नुकसान होता है।
A. पोषण की कमी होने वाली बीमारियां


कारण: असंतुलित भोजन या जरूरी पोषक तत्वों की कमी (जैसे विटामिन ए, सी या ई)।
लक्षण:
• विटामिन ए की कमी: आखें असामान्य होना, आखें धुंदली होना और मछलियों का धीमा बढ़ना
• विटामिन सी की कमी: शरीर टेढ़ा होना, रक्तस्राव होना, रोग प्रतिरोधक क्षमता घट जाना
• वसा जनित जिगर रोग: चर्बियुक्त भोजन होने पर पेट सूज जाना
प्रभावित मछलियां: सभी मछलियां, विशेषकर अधिक घने पालन वाली व्यवस्था में
रोकथाम और उपचार:
• गुणवत्तापूर्ण चारा दें: चारा संतुलित रखें (जैसे तिलापिया के लिए 30–40% प्रोटीन, 1–2% विटामिन)।
• चारा सुरक्षित रखें: चारा सूखी और ठंडी जगह पर रखें ताकि उनके पोषक तत्व सुरक्षित रहेें।
• विटामिन सप्लीमेंट्स दें: घर पर बनाए चारा में विटामिन मिक्स डालें।
अतिरिक्त सलाह: चारा बदल-बदलकर दें ताकि मछलियों को हर प्रकार के पोषक तत्व मिलने साथ ही चारा पर एफ्लाटॉक्सिन न होने की जांच भी करना चाहिए।
B. गैस बबल रोग


कारण: पानी में गैसें अधिक होने की वजह से (जैसे नाइट्रोजन या ऑक्सिजन), अक्सर खराब एरीएटर या रिसाव होने पर।
लक्षण:
• त्वचा, पंख या आखें सूज जाती हैं या उनके नीचे बुलबुले नजर आने लग जाते हैं।
• मछलियां असंतुलित तैरने लगती हैं, तैरने या सांस लेने में मुश्किल होती है, और सुस्त रहती हैं।
• लंबे समय तक रहने पर उनके ऊतक क्षतिग्रस्त होने लग जाते हैं।
प्रभावित मछलियां: हर प्रकार की मछलियां, विशेषकर एक साथ अधिक संख्या या उच्च दाब वाली व्यवस्था में।
रोकथाम और उपचार:
• गैस बाहर निकालें: गैस बाहर करने वाली व्यवस्था या एरीएटर लगाएँ।
• उपकरण की जाँच रखें: पंप या एरीएटर में रिसाव तो नहीं है, चेक करते रहें।
• पीने या रहने वाले पानी की जाँचें: घुली गैसें अधिक हैं या नहीं, इसका मापने वाला यंत्र रखें।
अतिरिक्त सलाह: एक साथ बड़ा पानी न बदलें — धीरे-धीरा बदलें, इससे समस्या नहीं बढ़ेगी।
मछलियों की बीमारियों से कैसे बचें
रोग होने से रोकना उनके इलाज करने की तुलना में ज्यादा अच्छा है। यहाँ कुछ आसान तरीके हैं:
1. बेहतर पानी रखें:
• हर सप्ताह पानी की जाँच करें (अमोनिया <0.02mg/L, नाइट्राइट <0.1mg/L, pH 6.5-8.0, ऑक्सिजन >5mg/L)।
• अच्छे फिल्टर और एरीएटर लगाएँ।
• जरूरत होने पर चूना डालें (100–200 किलो/हेक्टेयर)।
2. मछलियों की संख्या सही रखें:
• हर मछली की जरूरत के साथ स्टॉक रखें (जैसे एक वर्ग मीटर में 5–10 तिलापिया या एक घन मीटर में 10–15 किलो)।
• ज्यादा भीड़ होने पर तनाव बढ़ता है और रोग फैलने लगेंगे।
3. नई मछलियों को अलग रखें:
• नए स्टॉक को 2–4 सप्ताह तक अलग रखें।
• उनके स्वास्थ्य पर नजर रखें या जरूरत होने पर उनके रोग की जाँच कराएँ।
4. साफ उपकरण रखें:
• जाल, टंकी या औजारें हर बार साफ या कीटाणुरहित करें (जैसे iodine या bleach घोल)।
• एक साथ एक ही औजार हर खेत या केंद्र पर न अपनाएँ।
5. गुणवत्तापूर्ण चारा दें:
• चारा 25–40% प्रोटीन सहित होना चाहिए।
• जरूरत से ज्यादा चारा न डालें (रोज शरीर के भार का 2–3%) — इससे गंदगी नहीं बढ़ेगी।
6. संभावन होने पर टीके लगाएँ:
• ESC या streptococcosis जैसा रोग होने पर सुरक्षा के लिए टीके लगवाएँ।
• अधिक जानकारी के लिए नजदीकी मत्स्य पालन अधिकारियों या संस्थाओं से सलाह रखें।
7. मछलियों पर नजर रखें:
• हर रोज उनके खाने, तैरने या हरकत पर नजर रखें।
• हर महीने 5–20% मछलियों की जाँच (गिल्स या त्वचा) करना अच्छा रहता है।
8. कर्मचारियों का प्रशिक्षण दें:
• उनके स्टाफ़ को सुरक्षा, पानी की गुणवत्ता, और रोग की पहचान करना सिखाएँ।
• मछली विज्ञान जैसा संस्थान भी इसका प्रशिक्षण देता है।
मछलियों की बीमारियों के इलाज में नए तरीके
मछली पालन में नए तरीके स्वास्थ्य सुधारने में मदद कर रहे हैं:
• प्रोबायोटिक्स और इम्युनो स्टिमुलंट्स: चारा में अच्छे कीटाणु (जैसे Lactobacillus या Bacillus) डालने से मछलियों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और एंटीबायोटिक की जरूरत 30–50% तक घट जाती है।
• बायोफ्लोक तकनीक: बायोफ्लोक अच्छे सूक्ष्मजीव पैदा करता है, जो पानी की गुणवत्ता सुधारता है और मछलियों की सुरक्षा करता है। कार्बन-नाइट्रोजन अनुपाती (15:1) रखने पर ammonia या nitrite नहीं बढ़ता, इससे Aeromonas या Flavobacterium जैसा रोग होने का खतरा 20–40% तक घटता है। साथ ही चारा बदलने का अनुपाता भी 15–25% तक अच्छा रहता है। इसका अच्छे नतीजे पाने के लिए हर रोज घुलने वाली ठोस वस्तुओं (10–15 ml/L) पर नजर रखें और ऑक्सिजन की व्यवस्था अच्छे रखें। मछली विज्ञान जैसा संस्थान इसका प्रशिक्षण भी देता है।
• मॉलेकुलर जांच: PCR टेस्ट की मदद से KHV या TiLV जैसा रोग पानी या ऊतक में जल्दी पहचान किया जा सकता है, जिससे सुरक्षा करना आसान रहता है।
• रीसर्कुलेशन एक्वाकल्चर सिस्टम (RAS): पराबैगनी किरणें (UV) या जैव फिल्टर लगाने वाली व्यवस्था साधारण तालाब की तुलना में 70–90% तक रोग कारक सूक्ष्मजीव घटाती है।
• जलवायु अनुरूप व्यवस्था: पृथ्वी का तापमान बढ़ने पर शेड नेट या शीतलन व्यवस्था लगाकर मछलियों पर तनाव नहीं आने दिया जाता है।
निष्कर्ष
मछलियों की बीमारियां मछली पालन पर असर डालती हैं, लेकिन अच्छे इंतजाम से नुकसान को किया जा सकता है और मुनाफे रखा जा सकता है।नियमित जाँच करना, साफ-सफाई रखना, सुरक्षा के तरीके अपनाना और अनुभवी लोगों की सलाह लेना जरूरी है।
यदि मछलियों में सुस्ती, घाव या असामान्य हरकतें नजर आएं तो तुरंत मछली स्वास्थ्य विशेषज्ञ से सलाह लेकर इलाज शुरू करें।पूर्ण समर्थन, अच्छे उपकरण, प्रशिक्षण या सलाह के लिए मछली विज्ञान से संपर्क करें। उनके अनुभवे से आपका मछली पालन अच्छे से फल-फूल सकेगा। अधिक जानकारी के लिए उनकी वेबसाइट देखें या उन्हें फोन करें!